Monday, July 7, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 16

 धोखाधड़ी और खास तरह का व्यवहार एक ही बात हैं? 

6-7-2025 (श्याम का वक़्त है, टाइम देखा नहीं। शायद, 7.00 PM के करीब)   

अभी आंटी को मिलने आए हैं। इस (ज़मीन) विषय पर फिर कभी बात करेंगे। 

फिर कभी कब? फिर कभी तो मिलते ही नहीं आप। ना स्कूल मिलते और ना घर। वक़्त नहीं होता, इस विषय पर बात करने के लिए। ये क्या बता रहा है। साफ़ यही की धोखाधड़ी है। और भगौड़ा कौन होता है? जिसे पता होता है की उसने गुनाह किया हुआ है और अपने बचाव के लिए उसके पास कुछ खास नहीं है। 

मंजू कल आ जाना स्कूल। 

घर पे आए तो हुए हैं भाभी। यहाँ बात करने में क्या हर्ज है? वैसे भी आंटी ने बोला था की मैंने तो सुना है 30-35 लाख में दी है ज़मीन, 5-6 में नहीं। तो आंटी को भी कुछ तो पता ही होगा, क्यूँकि, अजय इस सबमें बिचौलिया है। 

तू अजय को क्यों बीच में लेती है। जो मुझे पता था वो मैंने बता दिया। 

धन्यवाद आप अभी तक अपनी जुबाँ पर हैं। ये भी बड़ी बात लग रही है, यहाँ के माहौल में। अब ये भी बता दें की घर की घर में ये अच्छी बात हुई है क्या। जो जमीन बेचना ही नहीं चाहते, उस ज़मीन को धोखाधड़ी से लेने की कोशिशें? इतने में नहीं भरा हुआ तो 2-कनाल में भर जाएगा क्या? और अजय का ही किया धरा हुआ है ये। ऊप्पर से किसी खास पार्टी के, कुछ खास लोगों द्वारा, उससे करवाया गया है। 

मंजू तू कल स्कूल आ जाईयो। 

भाभी स्कूल भी आई थी, याद हो तो। क्या हुआ?

अरे हम ही घर आ जाएँगे किसी दिन। 

वो तो सबसे बढ़िया बात है भैया। बताओ कब आ रहे हैं?

वक़्त लगेगा तभी। 

वक़्त लगाना तो अपने हाथ में होता है। जब चाहो लगा लो। ना चाहो तो कभी नहीं लगता। तो मुश्किल ही लग रहा है। 

मंजू तू कल स्कूल आ जाना। 

ठीक है भाभी। कितने बजे?

अरे स्कूल छोड़ो, हम ही घर आ जाएँगे। 

भाभी कह रहे हैं तो स्कूल भी सही है भईया। वो वक़्त तो बता रहे हैं। आपको तो पता ही नहीं, कब वक़्त लगेगा। 

3 बजे ठीक है 

ठीक है 

तुम आराम से बात करो। मुझे सिर दर्द हो रहा है। 

सॉरी आंटी। मैं सिर दर्द करने नहीं आई आपको। ये लोग आते दिखे तो आ गई। क्यूँकि, कहीं और तो मिलते नहीं। और आप अभी तक अपनी जुबाँ पर टिके हुए हैं, उसके लिए धन्यवाद। यहाँ पे ऐसे लोगों की कमी लग रही है मुझे। आज के टाइम में, शायद जुबाँ पे टिकना भी बड़ी बात हो गया है।  


7-7-2025   (2. 00 PM के करीब)

स्कूल चलेगी?

हाँ दीदी चल पड़ूँगी। 

तो थोड़ी देर में चलते हैं। मैं अभी तक नहाई नहीं हूँ। नहा आती हूँ। 

मैं भी नहीं नहाई हूँ दीदी। मैं भी नहा लेती हूँ। 

थोड़ी देर बाद बाथरुम में बाहर से आवाज़ आती है भांजी की। मौसी, मम्मी ने फ़ोन किया था, मामा जी तो स्कूल नहीं हैं। कहीं गए हुए हैं।  

ठीक है। 

मैं नहा के स्कूल की तरफ निकल लेती हूँ। चलो इस बहाने थोड़ा घूम ही आऊँ। जब से मदीना आई हूँ, वॉक तो बंध ही हो गई है। यहाँ खेतों की तरफ जाने के सिवा, कहीं कोई साफ़-सुथरी जगह ही नहीं है। 

स्कूल के रस्ते थोड़ी दूर एक गाडी दिखाई दे रही है। लग तो रहा है, लक्ष्य की है। जब तक दिखाई देता है, गाडी आगे निकल चुकी है। और आप मन ही मन सोचते हैं, तो ये स्कूल में ही था और इसे घर भेझ दिया?

थोड़ी दूर और चलने पर, भराण मोड़ के पास, अशोक भाई और भाभी दिखते हैं, गाडी में। आप धीरे हो जाते हैं। मगर, ये भी निकल जाते हैं, दूसरी तरफ मुँह करके, जैसे दिख ही ना रहा हो। और आप मन ही मन सोचते हैं। शिक्षा और ये व्यवहार? क्या कहलाता है? शिक्षा एक धंधा है? यहाँ कोई जुबाँ, कोई ईमान, कोई Manner या Coutesy नाम की चीज़ ही नहीं है? खैर। ऐसे-ऐसे धोखाधड़ी के मामले तभी होते हैं। वो सब शायद उनके व्यवहार में ही रचा बसा-सा हुआ है। मैं तो घूमने निकली थी। मेरे हिसाब से तो ये स्कूल थे ही नहीं। और मैं स्कूल वाले खेत तक घूमकर, वापस घर आ जाती हूँ।    

Saturday, July 5, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 15

हमारे यहाँ पुलिस ऑफिस, कुछ केसों में एक aknowledgement तक नहीं देते? ऐसे ही अपने आप decide कर लेते हैं, की ये ना तो रजिस्टर करना और ना ही aknowledge? 

शायद aknowledge तो हर complain का बनता है? क्यूँकि, कोई अगर आपके ऑफिस तक कोई समस्या रखता है, तो किसी उम्मीद में ही ईमेल करता होगा? कोर्ट उसके बाद ही आते होंगे शायद? 

खासकर, पियक्क्ड़ों के केस में माँ, बहन, बेटी या घर की औरतों तक की अगर सुनवाई नहीं होगी, तो ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी ज़मीनें तो, so called बड़े या थोड़े से भी पैसे वाले लोग वैसे ही हड़प जाएँगे?   

या शायद मैंने ही किसी गलत ईमेल पर भेझ दिया?

(Some spelling mistakes in this compalin seems कलाकारी by those kalakars, who are doing such things, not just in such complains, but in some other emails also, they change even attachment without senders knowledge. So please bear with this.)    




या बहन को चाहिए नहीं, इसलिए कोई aknowledgement तक नहीं है? बहन को अपना हिस्सा चाहिए, लिखना जरुरी है शायद? तो लिख लो उसे भी। धंधे पर तो नहीं बैठना पड़ेगा ना, उसके लिए? 

इसीलिए लोगों की इतनी औकात हो जाती है, की वो आपसे नहीं, बल्की, उन बेवकूफों से बात करते हैं, जो आसानी से उनके कहे में आ जाएँ? आपसे तो भागते हैं या भगा दिए जाते हैं, खास फ़ोन करके।    

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 14

बड़े दिनों बाद आज आखिर मुलाकात हुई, अशोक भाई से और साथ में उनके परिवार से, चाची को मिलने आए थे। मेरे जैसे तो सिर हो जाते हैं ऐसे ही? खासकर, जब लोग जमीन हड़पकर या ऐसा कोई काम या काँड कर, दूर-दूर भागने लगें? ऐसा ही?

बात तो वो आज भी नहीं करना चाह रहे थे। मगर, किसी की ज़मीन की तरफ गिद्ध निगाह रखकर, भागने से क्या काम चल जाएगा? वो ज़मीन ना आपकी थी, ना है और ना ही होगी। कम से कम मेरे ज़िंदा रहते। तो भाभी की तरह मेरा भी ईलाज कैसे करना है या कहाँ से करवाना है, तो शिक्षा के धंधे वाले लोगों से बेहतर किसे पता होगा? 

ये पोस्ट खास उस जनता के लिए, जो ये ब्लॉग रेगुलर पढ़ रहे हैं। कल को अगर मुझे कुछ होता है, तो उसके पीछे ये (आर्य स्कूल मदीना? या खूनी स्कूल मदीना?) और इनकी खास-म-खास पार्टी होगी। वो पार्टी, जो ना सिर्फ इस पीने वाले भाई की ज़मीन के पीछे है, बल्की चाहती ही नहीं, बल्की, पूरी कोशिश में है की येन केन प्रकारेण दूसरे भाई की ज़मीन भी हड़प लें। इन लोगों के शब्द सुनकर तो ऐसे लगता है, जैसे सब दान करने के लिए बैठे हैं इन्हें।  

यूनिवर्सिटी उसमें लगता है पूरी सहायता कर रही है, मेरा पैसा रोककर। 

You are requested again publically, give me my whole amount without any further delay. As an higher education system, you have already given her so much opportunities to grow personally and professionally that their signs are so evident in her life, body and all around her.                        

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 13

 जुआरियों के धंधे में 

आप वहाँ बैठे हैं 

जहाँ आपका अस्तित्त्व क्षण भर का रहा? 

या सालों, दशकों पहले 

आया गया हुआ? 

आपकी जानकारी के बिना? 


और कहीं-कहीं तो ऐसे कोढ़ो पर, जिन्हें आप नफरत करते हों?  


जितना ज्यादा इस धंधे के कोढों को जानने की कोशिश करोगे, उतना ही इससे नफरत होती जाएगी। और मुझे लगा, ऐसा मैं ही सोच रही हूँ? 

नहीं। जुए पर भी आपको काफी कुछ पढ़ने-सुनने को मिलेगा, यहाँ, वहाँ। कहीं जो शायद आँखें खोल रहा होगा और कहीं उसकी परतों के या बेहुदा सौदों की पोल खोल रहा होगा। और आप सोचने पर मजबूर होगे, की जो-जो इस धंधे में आए, वो कैसे आए होंगे? क्या उन्हें कहीं भी खबर नहीं हुई होगी, की ऐसा करना गलत है? खासकर, शिक्षा के ऊँचें पायदानों पर बैठे लोगों को? शिक्षा के ऊँचें पायदान? भला इतने नीच कैसे हो सकते हैं?

चलो, छुटभैईये तो अक्सर कम पढ़े-लिखे ही होते हैं। और ज्यादातर, सँसाधन-विहिन भी? बड़े लोग? कितने बड़े? कैसे अंदाजा लगाया जाए, उनके बड़पन का? शायद इससे, की ऐसी कुर्सियों पर बैठे लोग, कितना वो काम कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें वहाँ बिठाया गया है? और कितना, कोढ़ के जुए की किसी पार्टी का?   

सँस्कार? 

आदमियों को मारना सँस्कार में आता है, जुए के धंधे में? छुपे, गुप्त तरीके से गोलियाँ या जहर देना, वो भी सँस्कारी लोग ही करते होंगे? अब नामों का क्या है, वो तो किसी का भी लगाया जा सकता है? कौन, कहाँ, भला कौन से फॉरेंसिक करने आएगा? और किसी के जाने के बाद, उस इंसान के लिए किसी फॉरेंसिक का मतलब क्या रह जाएगा?     

लड़कियों को प्रॉपर्टी बोलना, या लड़कियों के नाम पर बनाए गए कोढों के नाम पर उनका धँधा करना, सँस्कारी होने की पहचान है? ऐसे-ऐसे कितने सँस्कार, कहाँ-कहाँ और किन-किन बहन-बेटियों के नाम पे किए हुए हैं तुमने? कल भी किए और आज भी कर रहे हो। सच में, कितने सँस्कारी हो तुम? फिर ऐसा कुछ इतना खुलम-खुल्ला लिखने या बोलने वाला का तो हाल क्या करोगे? सोचा जा सकता है?   

अंजान, कम पढ़े-लिखे और गरीबों को तो कितनी ही आसानी से कहीं से कहीं धकेला जा सकता है। तुम तो पढ़े- लिखों तक को नहीं बक्शते? कुछ गलत कहा क्या? 

जिन लड़कियों के नाम पर तुम कोढ़म-कोढ़ ज़मीनो के सौदे करते हो, बड़ी ही बेशर्मी से, अपने धेले के सँस्कारों के साथ, क्या उन लड़कियों से पूछते हो? उनकी औकात होती है कोई, तुम्हारे इस जमीनखोरी के जुआर धँधे में? 

या वो किन्हीं और ही सँस्कारों के बहाने मार दी जाती हैं? ऐसे भी और वैसे भी?