Sunday, May 11, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 11

 शिक्षा और राजनीती का क्या लेना-देना है, इस केस में?

राजनीती का तो सारा ही है। समाज की सब समस्याओं की जड़ है राजनीती। हालाँकि, समाधान भी वहीं हैं। मगर राजनीतिक रस्तों से अगर समाधान निकालने की कोशिश करोगे, तो शायद आपकी ज़िन्दगी ही नहीं, आपकी कई पीढ़ियों की ज़िंदगियाँ खप जाएँ। 

कोर्ट्स का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। कई केसों में तो कोर्ट्स भी लल्लू-पंजू से नजर आते हैं। ऐसा क्यों? ये शायद खुद कोर्ट्स बता पाएँ? कोर्ट्स इस सिस्टम में खुद एक कोढ़ (कोड) हैं।

इंसान, अच्छे-बुरे हर जगह और हर प्रॉफेशन में हैं। कितनी, कब, कहाँ और किसकी चलती है, ये  अहमियत रखता है, शायद। नहीं तो कितना कुछ कोर्ट्स तक, अपने सामने होते हुए भी, बेचारे से, लाचार से देखते हैं? जैसे उनके पास कोई रस्ता ही ना हो? खैर। शिक्षा का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। ये ज़मीनखोरी का एक छोटा-सा, तकरीबन-तकरीबन उसी वक़्त दिखाया-बताया जा रहा उदहारण है। जहाँ गाँव का कोई छोटा-सा स्कूल, कैसे किसी सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन, अपने ही चाचा, ताऊओं के बच्चों पर मार कर रहा है? 

यूनिवर्सिटी की फाइल्स या इमेल्स और गाँव के स्कूल वालों की घड़ाई? है ना मजेदार? 

वैसे मेरी यूनिवर्सिटी की बचत का अभी क्या चल रहा है?

भाभी की मौत के बाद, मैंने अपने नॉमिनी बदलवाने के ईमेल की। मगर हुआ कुछ नहीं। बल्की, इधर-उधर से चेतावनियाँ आनी लगी, की ऐसा मत करो। ऐसा हुआ तो, तीनों बहन-भाईयों को साफ़ करने की साज़िश है। और ऐसे लोगों के लिए, फिर गुड़िया को औना-पौना करना कितना मुश्किल होगा? समझ ही नहीं आ रहा था की क्या, कहाँ और कितना सच था। मगर मुझे भी लगा, वैसे भी जब इस घर में बच्चा ही एक है, तो अभी तो सब उसी का है। अगर तीनों बहन-भाईयों को ख़त्म करने जैसी कोई साज़िश चल रही है, तो भी उसी का है। मगर ऐसे में, वो भी कितना सुरक्षित होगी? और मैंने कुछ नहीं किया, जो पहले से नॉमिनी थे, वही रहे। ना ही यूनिवर्सिटी ने ईमेल के बावजूद बदले। बचत दो पर ईमेल होती रही। 

एक दिन यूनिवर्सिटी ने उसके लिए भी बुलाया। उसकी पोस्ट मैं पहले लिख चुकी शायद, की कुछ अजीब-सा चल रहा था। मेरे कहने के बावजूद, मेरे घर का पता नहीं बदला गया। मैंने सारे पैसे एक साथ देने को बोला, तो उन्होंने कहा की ऑप्शन ही नहीं है। 

जबकी कहीं और, ये ऑप्शन, मैंने पढ़ी और सुनी थी। 

कहने को मैं sign कर आई, मगर साथ में concerned official को ईमेल भी कर दी, जो कुछ वहाँ हुआ या मुझे समझ आया, उसके बारे में। तो अगर वो पता तक अपडेट नहीं कर रहे, तो उन sign के भी क्या मायने हैं?

आप कूट, पीट, लूटकर निकाल चुके हैं। तो छोटी-मोटी बचत तो शायद सारी दे ही देनी चाहिए। 

अब NSDL या Protean के नाम पर फ्रॉड इमेल्स के ड्रामे शुरु हो चुके थे। समझ ही ना आए, की कौन-सी ईमेल कहाँ-से है? या NSDL की कितनी ऑफिसियल वेबसाइट या ईमेल Id हैं? 

वहाँ भी ईमेल में जवाब यही था, की मुझे मेरा सारा पैसा दे दो। ताकी यहाँ अपना कुछ बंदोबस्त कर, आगे कुछ किया जाय। इस बीच जमीनखोर लोग, अगर फिर से कुछ खुरापात कर रहे हैं, तो इसका मतलब क्या है? क्यूँकि, यूनिवर्सिटी और गाँव में आसपास काफी कुछ कोआर्डिनेशन में चलता है।   

और ये लड़कियों के हकों पर राजनीती करने वालों के लिए भी। किसी की ज़मीन को यूँ, इतनी टिक्कड़बाज़ियों से, किसी प्राइवेट स्कूल की तरफ खिसकाना, क्या कहलाता है? सिर्फ माँ गई है बच्ची की। बुआ, बेटी दोनों घर बैठी हैं। और हाँ। एक और बुजुर्ग औरत भी है इस घर में, दादी। तो यहाँ शायद, कोर्ट्स भी बेचारे और लाचार ना हों? 

No comments:

Post a Comment