Saturday, May 3, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 2

 जो अपनी बैंक की कॉपी सँभालने लायक तक नहीं, वो जमीन के सौदे क्या करेगा? कौन-से दिमाग से करेगा?

जब 5 लाख कुछ रुपए भाई के बैंक आए, उससे पहले एक यस बैंक का नाटक रचा गया। किस तारीख को आए ये 5 कुछ, किसी के खाते में? किस बैंक का है वो खाता? अहम है क्या, ये सब जानना? हाँ। अगर आपको राजनीतिक पार्टियों के सामान्तर घड़ाई वाले कारनामों को जानना है, तो बहुत जरुरी है। किसने सँभाली फिर वो बैंक की कॉपी? या कहो किस, किसने? कब-कब पैसे निकाले गए उससे? वो पैसे कहाँ खर्च हुए? जहाँ खर्च हुए, वहाँ उसको जरुरत थी क्या?      

चलो ये तो मात्र 5 कुछ की कहानी है। इस दौरान मैंने थोड़ी छानबीन शुरु कर दी थी। उस छानबीन के साथ कुछ एक नरेटिव यहाँ-वहाँ से आ रहे थे। 

आंटी: ना ऐसे तो नहीं करना चाहिए। ऐसा हुआ है तो गलत है। मैंने तो सुना है 30-35 लाख के आसपास दी है। 

अच्छा? वो पैसा कहाँ है? कौन से अकॉउंट में? जिन्हें खुद वो ज़मीन किसी काम के लिए चाहिए थी, वो उसे किस कीमत पे देंगे? देंगे क्या? सबसे बड़ी बात उसे कोई बो रहा है। ढंग की इन्हें पकड़ा देंगे, तो ये क्या करेंगे? 

ये तो मुझे नहीं मालूम। 

अजय का क्या रोल है, इसमें?

उसका क्या रोल होगा। कुछ नहीं है। 

वो खुद कह रहा हो तो?

गलत है। उसका क्या मतलब, ऐसे किसी की ज़मीन दिलवाने का?

वही मैं पूछ रही हूँ। आपके प्यारे हैं, पूछना उनसे, ये कैसे घपले रच रहे हैं? वैसे भी वो पहले ही कुछ केसों से मुश्किल से निकला है। फिर से क्यों कहीं फँसना चाहता है?

बावला है। नूं ना दूर रहूँ। 


दीदी आपने बुलाया मुझे?

हाँ। क्या चल रहा है, उस ज़मीन का? ये कौन-से और कैसे पैसों के लेनदेन हो रहे हैं, रुंगे जैसे से?

मुझे तो पता नहीं। 

वहीं पड़ा रहता है तू। फिर कैसे नहीं पता?

पता चला तो बताऊँगा। 

भाई घर की घर इसा साँग बढ़िया ना होता। यहाँ कुछ होगा तो आँच तुम्हारे यहाँ नहीं आएगी, ये मत सोचना। 

देख लाँगे। 


प्लॉट की तरफ घुमने गई तो कोई ट्रक आया हुआ था, ईंटों से भरा। 

अरे रुको। किसने मँगवाई हैं ये?

पड़ोस से कोई बोलता है, अजय ने। 

अच्छा, क्या चल रहा है यहाँ? कुछ बनवा रहे हैं?

शायद, प्लॉट की चारदीवारी। 


कुछ दिन बाद पता चलता है, वहाँ जो भाई का रहने का छोटा-सा कमरा है, उसपे ही लग रहे हैं वो रोड़े। और भाई अक्सर वहाँ से गुल मिलता है। कभी-कभार मिलता है, तो पॉलीथिन में कोई प्याजों की सड़ांध के साथ खाना लिए हुए। 

ये क्या है? कहाँ रहता है तू आजकल? घर क्यों नहीं खाता खाना? फिर से शुरु हो गया? कहाँ से हो रही है ये जगाधरी की सप्लाई?  

अजय: 2 महीने हो गए, होटल पे खाता है। 

2-महीने? घर क्या फिर इसका भूत जाता है खाने?

मैंने लगवाया हुआ है?

ओह। धन्यवाद बताने के लिए। तो ज़मीन के नाम का ये रुंगा होटल पर या रेस्टोरेंट में जाएगा? इसीलिए, ज़मीन बिकवाई है? तुझे कितने मिले खाने को? खुद भी खाता है क्या होटल पे, बिना कुछ कमाए? कितने दिन चल जाएँगे इतने से पैसे होटल या रेस्टोरेंट? इसीलिए इसे घर नहीं आने दिया जाता? ऐसे तो जल्द ही काम तमाम कर दोगे इसका। दारु और होटल, मस्त काम है। 

छोटू वहाँ से खिसक चूका है, अपने प्लॉट की तरफ। 

और यहाँ मत दिखा कर मेरे को। तेरे जैसे भाइयों के होते दुश्मनों की क्या जरुरत?


मैंने बोला, यहाँ मत दिखा कर। और पता चला वहाँ मेरा ही ईलाज भांध दिया गया, की मैं ही वहाँ ना दिखूँ। इस दौरान घर पर बैड पर चाकू या डंडा रख जाना, जैसे कारनामे भी शुरु हो चुके थे, इसी भाई द्वारा जिसकी ज़मीन बिकी थी? बिकी थी? या रायगढ़ के होटल के नाम हुई थी? और ईधर-उधर, चेतावनियाँ भी आने लगी थी। संभल कर, तेरा पक्का ईलाज बँधवाने के चक्कर में हैं। रोड़ा है तू, जिस घर को वो उजाड़ने चले हैं, उसे बचाने का काम कर रही है। बोतल वाले को ऐसे ख़त्म कर रहे हैं, तुझे उसी के हाथों करवाने के प्लान हैं। 

कौन हैं ये लोग? और क्यों? अपने घर को ऐसे-ऐसे लोगों से कौन नहीं बचाने की कोशिश करेगा?

और जवाब मिला, Conflict of interest की राजनीती। जो लोगों को आपस में ही भीड़वाकर, इधर भी खाती है, और उधर भी।  छोटे-मोटे से लालच, छोटे-मोटे से डर पैदा कर लोगों के दिमाग में।      

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