Tuesday, May 6, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर और युद्ध? 4

 युद्ध, युद्ध, युद्ध? 

ऐसा ही कुछ सुन रहे हैं क्या आप?

या आप जो न्यूज़ चैनल्स देखते हैं, वहाँ सब शांति शांति है?

ऐसे कैसे?

ऐसी ही दुनियाँ में हैं हम?

यहाँ भी अगर आप भारत के न्यूज़ चैनल्स देखेँगे तो वो कुछ कहते नज़र आएँगे या कहो की चीखते नज़र आएँगे और पाकिस्तान के न्यूज़ चैनल्स देखोगे तो वो कुछ?

ऐसे कैसे? दोनों जैसे एक दूसरे के बिलकुल विपरीत चीख रहे हों?

या आप चीखने वालों की बजाय, शाँत तरीके से सही मुद्दों के चैनल्स को देख रहे हैं? तो वो शायद, शेयर बाजार की बात तो नहीं कर रहे? ऐसा लगता है, युद्ध वहीँ चलते हैं?    

या ज़मीनो की लूटखसौट पर?  

या  

कोई ऐसे भी युद्ध होते हैं जो शिक्षा की बात करते नज़र आएँ? गरीबों की बात करते नज़र आएँ? समाज के कमजोर वर्गों, बच्चों या पिछड़ों की बात करते नज़र आएँ?

रोटी, कपड़ा, मकान, साफ़ सफाई, स्वच्छ खाना पानी वैगरह की बात करते नज़र आएँ?

नहीं? इस स्तर पर लोगों का भला करने के लिए कोई युद्ध नहीं होते?

युद्ध सिर्फ और सिर्फ मार्केट के लिए या अपनी आम भाषा में कहें, तो धंधे के लिए होते हैं?  


ये युद्ध तो नहीं चल रहा कहीं कोई?
या कोई ड्रिल चल रही है?
नौटँकी जैसे कोई?

ठीक ऐसे, जैसे पीछे वाली ज़मीनखोरों का धँधा वाली पोस्ट?  

थोड़ा डिटेल में आएँगे इस पर भी, आगे किसी पोस्ट में। 
आजकल सीख रही हूँ, थोड़ा बहुत ये वाला कोढों का जाल भी  

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