अशोक भाई साहब, आप ईमेल करने वाले थे, "वो प्रॉपर्टी जो आपकी ना है और ना होगी", जिसको आप कह रहे हैं की हमने खरीद ली है। दो बोतल देकर? घर वालों के विरोध के बावजूद? खासकर, सुनील की बड़ी बहन, विजय के विरोध के बावजूद? सुना है, कानून के अनुसार उस दादालाही जमीन में बहन का भी हिस्सा होता है? उसका उस 5 लाख आगे भी कोई हिसाब किताब बताने वाले थे शायद आप?
भूल गए लगता है? इसीलिए याद दिलवाया जा रहा है की आगे और ज्यादा भद ना पिटे। सुना है शिक्षक हैं शायद आप? या प्रॉपर्टी डीलर?
वैसे सुना है, बलदेव सिंह की सड़क के साथ वाली जमीन (अजय दांगी) भी आपने खरीद ली है? सुना है। कितने में? 9-10 लाख में? या उससे आगे भी कोई हिसाब किताब है?
इससे साल, दो साल पहले दादा समन्दर के भी 8-10 किले खरीदे हुए हैं, वो भी गाँव में ही। उसका भी कोई हिसाब होगा? हालाँकि, वो जमीन और ये ज़मीन एक नहीं है। दोनों में ज़मीन और आसमान का फर्क है।
और भी आपकी कई प्रॉपर्टी यहाँ वहाँ सुनने को मिली हैं, करोड़ों में। एक छोटे से स्कूल से कितनी कमाई हो जाती है? ऐसा कौन सा कारोबार चलाते हैं आप? स्कूली शिक्षा के नाम पर ज़मीनी या प्रॉपर्टी धँधा?
ऐसे घपलों को रोकने का एकमात्र उपाय कोई भी या किसी भी तरह का ट्रस्ट हो, वो अपनी प्रॉपर्टी की सारी जानकारी अपने पोर्टल पर उपलभ्ध कराए। अगर किसी को वहाँ जानकारी न मिले, तो कोई भी ऐसी जानकारी उस ट्रस्ट से माँग सकता है। और RTI के तहत उन्हें उपलब्ध करानी पड़ेगी। तो बहुत से घपले तो यहीं ख़त्म हो जाते हैं। आप क्या कहते हैं?
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