सुना है, एक महीना ही होता है RTI जवाब के लिए? वो आज खत्म हो रहा है। तो उस ज़मीन का धोखाधड़ी वाला लेन-देन भी ख़त्म हो चुका। वो जिनकी थी, उन्हीं की है और रहेगी। हाँ। अब लड़की और आ गई है, उस लिस्ट में। देखते हैं की जवाब और कारवाही अभी होगी या इस धंधे में संलिप्त कोर्ट और जज अपने चेहतों को और वक़्त देंगे? ये सब पूछने वाले का पत्ता साफ़ होने तक और इंतजार करेंगे?
इरादे नेक भी हों, मगर तरीके गलत, तो परिणाम भी सही कहाँ होते हैं?
एक trust या society, जो शिक्षा के नाम पर बनाए गए, मगर, स्कूली और शिक्षा के धँधे वालों के पास जवाब नहीं है की
उनके पास कुल कितनी प्रॉपर्टी है?
कब, कहाँ-कहाँ, कितने में और किन-किन लोगों के नाम पर खरीदी गई?
खासकर, पिछले कुछ सालों में उन्होंने कितनी प्रॉपर्टी, कहाँ, कहाँ और किस, किसके नाम पर खरीदी है?
और इतना पैसा उनके पास कहाँ से आया?
अजय दांगी का इस सबमें क्या लेना-देना है? उसकी ज़मीन और सुनील की ज़मीन का कैसा हिसाब-किताब है यहाँ? ये अपने आप में सारी पोल पट्टी खोल रहा है। एक की ज़मीन करोड़ों की और उसी किले की दूसरे भाई की ज़मीन कौड़ी की? हकीकत ये है, की वो अनमोल है और बिकाउ ही नहीं है।
सबसे बड़ी बात, अजय की ज़मीन का लेन-देन कब हुआ? ऐसा क्या विवाद उठ खड़ा हुआ, की उसे मेरे द्वारा सुनील की ज़मीन की 2 बोतल के बदले धोखाधड़ी का मुद्दा उठाने के बाद ही ज़मीन बेचनी पड़ी?
अपनी बहन-बेटियों को गोडो, चोदो के लीचड़ जुए बंद करो गुंडों। और ये कुर्सियाँ? कोठे के धँधे के एजेंटों की कुर्सियाँ हैं या शिक्षा के संस्थानों की? या शायद खास किस्म के राइटर और डायरेक्टर की हैं। कोई एक्सपेरिमेंट के नाम पर इम्प्लांट रखते हैं और कोई मूवी बनाते हैं। और खास इफेक्ट्स के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं।
और सुनो, जब कोई ज़मीन अगली पीढ़ी के नाम उतरती है, तो लड़की के नाम भी उतरती है या नहीं? अगर नहीं, तो लड़की से हस्ताक्षर तो लिए जाते होंगे? या वो भी कोई और ही उसके नाम पर कर देता है? ये तो एक और धोखाधड़ी हो गई। या मान लो, जिसने नाम करवाई, उस वक़्त ऐसा कोई मुद्दा ही नहीं था। बाद में वो मुद्दा आ गया, और लड़की ने अपनी ज़मीन देने से मना कर दिया। खरीदने वालों को साफ़-साफ़ बता दिया, की आप नहीं खरीद सकते। मगर, वो फिर भी कहें की खरीद ली? तो कैसे देंगे बेचारे, ऐसी RTI का जवाब? धोखाधड़ी के सिवाय उनके पास कुछ है ही नहीं बताने को?
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