लड़कियों के ज़मीनी अधिकार
ज़मीनी ही क्यों? लड़कियों के प्रॉपर्टी के अधिकार लिखना चाहिए। वो फिर चाहे कैसी भी प्रॉपर्टी क्यों ना हो।
वक़्त आपको काफी कुछ सिखाता है। बुरा वक़्त भी और भला वक़्त भी। कुछ ऐसा, जो सिर्फ वही वक़्त सिखा सकता है। ना कोई इंसान और ना ही कोई शिक्षक। एक ऐसा इंसान, जो अभी कुछ महीने तक भी कह रहा हो की मैं, मैं भला यहाँ ज़मीन का क्या करुँगी? और फिर, इतनी है ही कहाँ, जिसके लिए बँटवारा हो? अचानक से बदल जाता है? नहीं अचानक से नहीं शायद? काफी कुछ देखने, भुगतने और सुनने के बाद? खासकर, जब किसी ख़ूनी स्कूल को उस ज़मीन पर अपने पैर पसारते देखता है? और वो भी कैसे? धोखे से? चालबाज़ी से? कैसे-कैसे घिनौने हथकंडों से? वो ख़ूनी स्कूल जो जाने कहाँ कहाँ रिस्वत देकर आगे बढ़ा है। सिर्फ रिस्वत देकर? या दादागिरी और गुंडागिरी से भी? लिखना चाहिए की हर तरह के हथकंडे अपना कर।
चलो छुटभैईयों को तो नहीं मालूम की लड़कियों के कोई ज़मीनी अधिकार भी होते हैं? वो तो कम पढ़े लिखे या गँवार हैं? जो पिछले 25 साल से एक स्कूल चला रहे हैं, क्या उन्हें भी नहीं मालूम की लड़कियों के पैदाइशी ही कोई ज़मीनी अधिकार होते हैं? इतने भोले और शरीफ़ हैं वो?
तो कोर्ट उन शरीफ़ों को ये बताने का काम करेंगे क्या?
efiling services for litigants?
online courts?
या
Virtual Courts?
अगर ये ऑनलाइन हैं तो कम से कम ज़मीन का डाटा भी इनके पास ऑनलाइन ही होगा? नहीं होगा तो एक ईमेल से concerned department को ईमेल करने पर वो मिल सकता है। कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। हम जैसों को भी अगर ऐसी कोई ईमेल सुविधा मिल जाए तो अच्छा हो। क्यूँकि जमाबंदी वाली वेबसाइट लेटेस्ट डाटा नहीं निकाल रही। 2021 तक का ऑनलाइन दिखा रही है और उसको भी देने में आना कानी। अब वो आना कानी जो मेरे लैपटॉप को अपने कब्ज़े में रखते हैं, उनकी वज़ह से है या उस वेबसाइट की ही दिक़्क़त है? ये भी ऑनलाइन कोर्ट्स को ज्यादा मालूम होगा। क्यूँकि, उनके पास ऐसा जानने के सँसाधन हैं।
तो इतने छोटे से काम के लिए किसी भी शिकायत कर्ता को, शायद वकील की जरुरत नहीं होनी चाहिए। जब सारा डाटा ऑनलाइन है, तो ये तो ऑनलाइन ही पता चल जाएगा, की किसी भी परिवार में कितने सदस्य हैं और उनकी कितनी ज़मीन और कहाँ-कहाँ है। और किसके नाम कितनी होनी चाहिए। ऑनलाइन ही वो बाँट दी जाए और ऑनलाइन ही उसके पेपर मिल जाएँ। नहीं तो पटवारी संसाधनों वालों के चककरों में आकर, थोड़ा बहुत खुद खाकर, किसी और की ज़मीन किसी के नाम किए मिलेंगे और फिर उसे ठीक करवाने के चक्कर में, यही संसाधनों वाले बाकी ज़मीन को भी अपने नाम धरे मिलेंगे। उस लड़की तक की जो लिखित तक में कह चुकी हो की नहीं बेच रहे हैं। ये कहकर की तेरे तो नाम ही नहीं है। कल को ऐसे लोगों को कोई ऐसा भी फरहा दिखा सकता है की लड़की को हमने खरीदा हुआ है और बेच रहे हैं। खरीद लेंगे ये उसे, और कह देंगे की तुम तो तुम्हारे नाम ही नहीं हो। बेहुदा और घटिया किस्म के गुंडे जो ठहरे?
और यहाँ तो मसला सिर्फ मेरे नाम की ज़मीन का ही नहीं है।
बल्की, उस पियक्कड़ की ज़मीन का भी है, जो आजकल सुना है, किसी बिहारी इलेक्शन में कोई खास भूमिका, किसी खास पार्टी की Dal housie में निभा रहा है? अब ये किसके और कैसे कोड हैं, ये भी इन कोर्ट्स को ही ज्यादा पता होंगे। अब ये गुप्त सुरँगे, उसे सही सलामत वापस घर पहुँचायेंगे या इनके अगले काँड का वक़्त हो गया है?
और उस लड़की के भी हक़ का सवाल है, जिसकी माँ के दुनियाँ छोड़ते ही ये ज़मीनी हेरफेर वाला काँड रचा गया। अभी वो नाबालिक सही, मगर कोई सेफ्टी तो उसे भी चाहिए, बाप के ज़मीनी अधिकार से। ये गुपचुप छुपे तरीके से वो भी स्टेकहोल्डर्स से, ज़मीनों के धंधे करने वालों को कोई तो मैसेज जाए, की बहुत हो चुका। अब और दादागिरी नहीं।
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