Thursday, June 19, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 12

 गुंडे जो जबरदस्ती दूसरों के घरों में घुसें?

औकात है?

गुंडे जो जबरदस्ती या धोखाधड़ी से अर्थियों के ढेर लगाएँ?

औकात है?

गुंडे जो जबरदस्ती या धोखाधड़ी से,

दूसरों की जमीनों को हड़पने की कोशिश करें?   

औकात है?  

बड़ी औकात कांता भाभी तेरी?

या तेरे गुंडे की? ओह ! भतीजे। 

2-कनाल के लिए कितनी और अर्थियाँ उठाओगे?

भाभी को तो खा गए। 

जबरदस्ती या धोखाधड़ी से?

सुना है, स्कूल खोलने वाली थी वो अपना?

उसी ज़मीन पर?

जिस पर तुम्हारी गिद्ध-सी निगाहें,

कब से टिकी हैं? 

   

सुना है,

उसके बाद ये बहन 

वहीँ अपनी कोई छोटी-मोटी, पढ़ने-लिखने लायक 

झोपड़-पट्टी बनाने वाली थी?

क्या हुआ उसका?

भतीजे को बेचारे को, शायद नहीं पता 

की उस झोपड़-पट्टी की ऑफिसियल ईमेल तो 

और भी पहले चल चुकी। 


बहन, बेटियों को और कैसे-कैसे खंडहरों वाली 

जेलों में रखोगे?

जहाँ-जहाँ चलेगी तुम्हारी?

और तुम?

कब तक उनके अपनी कमाई के पैसे रोककर,

कोशिश में रहोगे, की वो तुम्हारी गुलामी में नौकरी करें?

चाहे वो तुम्हें धेला पसंद ना करती हों। 

कैसे भाई-बंध, भतीजे या चाचे-ताऊ या दादे हो तुम? 

किन कंसों, शकुनियों या रावणों के प्रतिनिधि?

या और कैसे-कैसे राक्षसराजों की कर्तियाँ?     

  

जबरदस्ती की औकात और भगोड़ा होना?

एक ही होता है क्या?

इतना सुनने के बाद तो, कोई भी इज्जत वाला पीछे हट जाए?

पर शिक्षा का धंधा करने वाले?

2 कनाल के लिए?

नहीं, नहीं, इरादा तो सबकुछ हड़पने का था। 

वो हो नहीं पाया?    

तो चालें और धोखाधड़ी का धंधा जारी है। 

बेटा, आज फिर सुना है, तेरा फोन बंध है?  

क्या कर रहा है, उस ज़मीन पर तू?  

उस ज़मीन से पीछे हटने के सिवा, तेरे पास रस्ता है क्या?

बहुत होंगे शायद? 


1 साल हो गया या 2?

वो दो बोतल देके फोटो करवाने का?

उस बोतल वालों के घर के विरोध के बावजूद। 

बुआ के मैसेज कब-सी गए थे?

चाचे, भतीजे के पास?

आजकल में?

या उसी के आसपास? 

तब से भगोड़े ही हो शायद? 

कैसे-कैसे काम करते हो?

की भगोड़ा होना पड़े?   


कितना और गिरोगे?

शिक्षा के धंधे में?

2 कनाल के लिए?

सिर्फ 2 कनाल का लालच?

इतने अमीर लोगों के लिए?

कौन जगह है वो, जहाँ मिलती है ऐसी जमीन?

5-6 लाख में?  

या 30-35 लाख में?

कैसे-कैसे लालच देकर 

कैसा-कैसा रुंगा बाँटते हो?

वो भी अपनों को ही?   

ऐसे गंदे धंधे करने की बजाय, 

बेहतर ना हो, की दिमाग कहीं ढंग की जगह लगाओ। 


सुना है, किसी का यूनिवर्सिटी का पैसा आज तक रोकने की भी, बस इतनी-सी ही कहानी है? ये तार आपस में मिले हुए हैं? सुना है। हालाँकि, अपनी समझ से आज तक परे है। 

लोगों को और उनके संसाधनों पर काबू और कब्जे  करने की कोशिशें और कहानियाँ। जो मिलती, जुलती-सी लगेंगी, यहाँ भी, वहाँ भी और वहाँ भी। मगर ध्यान से देखने, पढ़ने लगोगे, तो कुछ नहीं मिलता, मकड़ी-से जालों के सिवाय। 

हमारे जैसे सोचते हैं, घर-कुन्बे की बात है, ऐसे ही निपट जाए। मगर, कुछ लोगों को शायद, मजा नहीं आता ऐसे?        

Sunday, May 11, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 11

 शिक्षा और राजनीती का क्या लेना-देना है, इस केस में?

राजनीती का तो सारा ही है। समाज की सब समस्याओं की जड़ है राजनीती। हालाँकि, समाधान भी वहीं हैं। मगर राजनीतिक रस्तों से अगर समाधान निकालने की कोशिश करोगे, तो शायद आपकी ज़िन्दगी ही नहीं, आपकी कई पीढ़ियों की ज़िंदगियाँ खप जाएँ। 

कोर्ट्स का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। कई केसों में तो कोर्ट्स भी लल्लू-पंजू से नजर आते हैं। ऐसा क्यों? ये शायद खुद कोर्ट्स बता पाएँ? कोर्ट्स इस सिस्टम में खुद एक कोढ़ (कोड) हैं।

इंसान, अच्छे-बुरे हर जगह और हर प्रॉफेशन में हैं। कितनी, कब, कहाँ और किसकी चलती है, ये  अहमियत रखता है, शायद। नहीं तो कितना कुछ कोर्ट्स तक, अपने सामने होते हुए भी, बेचारे से, लाचार से देखते हैं? जैसे उनके पास कोई रस्ता ही ना हो? खैर। शिक्षा का भी कुछ-कुछ ऐसे ही है। ये ज़मीनखोरी का एक छोटा-सा, तकरीबन-तकरीबन उसी वक़्त दिखाया-बताया जा रहा उदहारण है। जहाँ गाँव का कोई छोटा-सा स्कूल, कैसे किसी सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन, अपने ही चाचा, ताऊओं के बच्चों पर मार कर रहा है? 

यूनिवर्सिटी की फाइल्स या इमेल्स और गाँव के स्कूल वालों की घड़ाई? है ना मजेदार? 

वैसे मेरी यूनिवर्सिटी की बचत का अभी क्या चल रहा है?

भाभी की मौत के बाद, मैंने अपने नॉमिनी बदलवाने के ईमेल की। मगर हुआ कुछ नहीं। बल्की, इधर-उधर से चेतावनियाँ आनी लगी, की ऐसा मत करो। ऐसा हुआ तो, तीनों बहन-भाईयों को साफ़ करने की साज़िश है। और ऐसे लोगों के लिए, फिर गुड़िया को औना-पौना करना कितना मुश्किल होगा? समझ ही नहीं आ रहा था की क्या, कहाँ और कितना सच था। मगर मुझे भी लगा, वैसे भी जब इस घर में बच्चा ही एक है, तो अभी तो सब उसी का है। अगर तीनों बहन-भाईयों को ख़त्म करने जैसी कोई साज़िश चल रही है, तो भी उसी का है। मगर ऐसे में, वो भी कितना सुरक्षित होगी? और मैंने कुछ नहीं किया, जो पहले से नॉमिनी थे, वही रहे। ना ही यूनिवर्सिटी ने ईमेल के बावजूद बदले। बचत दो पर ईमेल होती रही। 

एक दिन यूनिवर्सिटी ने उसके लिए भी बुलाया। उसकी पोस्ट मैं पहले लिख चुकी शायद, की कुछ अजीब-सा चल रहा था। मेरे कहने के बावजूद, मेरे घर का पता नहीं बदला गया। मैंने सारे पैसे एक साथ देने को बोला, तो उन्होंने कहा की ऑप्शन ही नहीं है। 

जबकी कहीं और, ये ऑप्शन, मैंने पढ़ी और सुनी थी। 

कहने को मैं sign कर आई, मगर साथ में concerned official को ईमेल भी कर दी, जो कुछ वहाँ हुआ या मुझे समझ आया, उसके बारे में। तो अगर वो पता तक अपडेट नहीं कर रहे, तो उन sign के भी क्या मायने हैं?

आप कूट, पीट, लूटकर निकाल चुके हैं। तो छोटी-मोटी बचत तो शायद सारी दे ही देनी चाहिए। 

अब NSDL या Protean के नाम पर फ्रॉड इमेल्स के ड्रामे शुरु हो चुके थे। समझ ही ना आए, की कौन-सी ईमेल कहाँ-से है? या NSDL की कितनी ऑफिसियल वेबसाइट या ईमेल Id हैं? 

वहाँ भी ईमेल में जवाब यही था, की मुझे मेरा सारा पैसा दे दो। ताकी यहाँ अपना कुछ बंदोबस्त कर, आगे कुछ किया जाय। इस बीच जमीनखोर लोग, अगर फिर से कुछ खुरापात कर रहे हैं, तो इसका मतलब क्या है? क्यूँकि, यूनिवर्सिटी और गाँव में आसपास काफी कुछ कोआर्डिनेशन में चलता है।   

और ये लड़कियों के हकों पर राजनीती करने वालों के लिए भी। किसी की ज़मीन को यूँ, इतनी टिक्कड़बाज़ियों से, किसी प्राइवेट स्कूल की तरफ खिसकाना, क्या कहलाता है? सिर्फ माँ गई है बच्ची की। बुआ, बेटी दोनों घर बैठी हैं। और हाँ। एक और बुजुर्ग औरत भी है इस घर में, दादी। तो यहाँ शायद, कोर्ट्स भी बेचारे और लाचार ना हों? 

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 10

स्कूल और दो कनाल ज़मीन (Protection?)

(ये पोस्ट दिसंबर 2024 की है, जब ये सब चल रहा था तभी की) 

सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से?

जिन्हें राजनीतिक जुए की मार आम लोगों पे कैसे-कैसे होती है, को जानना हो, वो इस शराब लत वाले इंसान पे फोकस कर सकते हैं। बहुत-सी मौतों के राज समझ आएंगे और तारीखों के भी। वो शराबी नहीं है, उसे शराबी सिस्टम की जरुरतों या कहो पार्टीयों की जरुरतों ने बनाया है। थोड़ा ज्यादा हो रहा है ना? और उसपे मैं ये कहूं की ये ज्यादातर आम-आदमियों पे लागू होता है। सिस्टम। 

बड़े लोग सिस्टम को बनाते हैं, अपनी जरुरतों के अनुसार। और आम-आदमी बनता है, उनकी जरुरतों का मोहरा, गोटी। इनमें वो भी हो सकते हैं, जो आज इस सिस्टम की या किसी एक पार्टी की जरुरत के अनुसार, इस सामाजिक सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन चुके हैं। जिस किसी वजह से। अगर आप गाँव के किसी स्कूल से सम्बंधित है, तो थोड़ा बहुत पैसा और ठीक-ठाक ज़िंदगी होते हुए भी, सामाजिक सँरचना के पिरामिड में आखिर वाले पायदान पे ही हैं। गाँव आज भी पिरामिड का वही हिस्सा हैं। हाँ। उस गाँव वाले पिरामिड में हो सकता है, स्तिथि थोड़ी-सी सही हो।        

सिस्टम एक पिरामिड है। इस पिरामिड के तीन अहम हिस्से हैं।  

उत्पादक (Producers) : पैदा करने वाला, जैसे खाना, कपड़ा और मकान। और भी कितनी ही तरह के उत्पाद, जो इंसान प्रयोग करता है।           

उपभोगता (Consumers) : प्रयोग करने वाला  

सफाई कर्मी (Decomposers) : साफ़-सफाई करने वाले, किसी भी तरह की 

जहाँ इन तीन हिस्सों में संतुलन है, वो घर, परिवार या समाज संतुलित है। वो इंसान संतुलित है। जहाँ इनमें से किसी एक में भी कहीं कुछ गड़बड़ है या असंतुलन है, वो समाज असंतुलित है। वो सिस्टम असंतुलित है। वो घर, परिवार,  इंसान असंतुलित है।   

स्कूल और दो कनाल ज़मीन का इस सबसे क्या लेना-देना? 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई 

चलो एक दारु-लत वाले इंसान की कहानी सुनते हैं । सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से? 

शायद इसीलिए, भतीजे ने (दूसरे दादा के बच्चे, रोशनी बुआ वाला घर), वो ज़मीन खरीद ली? क्यूँकि, उसने खुद ऐसा बोला की बुआ Protection के लिए ली है। हम नहीं लेते, तो कोई और लेता। किसके और कैसे Protection के लिए? ये समझ नहीं आया बुआ को। ये शराब दो और ज़मीन लो के गाँवों में ही इतने किस्से क्यों मिलते हैं?    

सबसे बड़ी बात, क्या वो ज़मीन बिकाऊ थी? सुना, कुछ वक़्त पहले तो वहाँ स्कूल बनने वाला था। भाभी के जाने के बाद, शायद कोई छोटी-मोटी रहने लायक जगह या कुछ ऐसा-सा ही। बुआ को हमेशा के लिए गाँव रहना नहीं, तो किसके काम आता वो? अरे वो तो पैसा यूनिवर्सिटी ने रोक रखा है ना? वैसे यूनिवर्सिटी की उस छोटी-मोटी बचत में, मैं अपने नॉमिनी बदलने की रिक्वेस्ट भी दे चुकी, काफी पहले। मगर, जाने क्यों आज तक यूनिवर्सिटी ने ना वो नॉमिनी बदले और ना ही मुझे अभी तक वो पैसा दिया। जाने क्या-क्या होता है दुनियाँ में? और क्यों होता है? क्या इसीलिए, की ये थोड़ी-सी किसी भाई की, खास जगह वाली ज़मीन बिकवाई जा सके? क्यूँकि, अब जो नॉमिनी में नाम हैं, उनमें एक ये है, जिसकी ज़मीन बिकवाई गई है। और दूसरा नाम भतीजी। माँ और छोटे भाई का हटा दिया, क्यूँकि उन्होंने कहा की उन्हें जरुरत नहीं है। इस भाई का जैसे अपहरण किया हुआ है और बोतल सप्लाई हो रही हैं। उस हिसाब से तो जल्दी ही खा जाएँगे इसे। या इसीलिए कुछ अपने कहे जाने वाले लोग, किसी गरीब का फायदा उठा रहे हैं? बहन तो कोई सहायता कर नहीं सकती, इस हाल में? बचा कौन? माँ तो वैसे ही आई-गई के बराबर है? भाई क्यों और कब तक भुगतेगा, ऐसे इंसान को?          

वैसे घर पे माँ-बहन को तो जरुर बताया होगा, ये जमीन खरीदने वाले अपनों ने? क्यूँकि, वो माँ के पास घर आता-जाता था और खाना भी वहीं खाता था। कुछ होता तो हॉस्पिटल बहन लेके जाती थी। दो बार तो शराब के नशे की वजह से एडमिट भी हो चुका और deaddiction सेंटर भी जा चुका। ये अजीबोगरीब किस्से-कहानियाँ कैसे और कहाँ-कहाँ जुड़े हैं, ये किन्हीं और पोस्ट में। अगर नहीं संभाला गया होता, तो कितने ही उसके आसपास वालों की तरह, राम-नाम-सत्य हो चुका होता।  

मगर जबसे ये ज़मीन के चर्चे शुरू हुए, खासकर भाभी के जाने के बाद, तबसे कुछ और भी खास चल रहा है। बंदा जैसे अपहरण हो रखा हो। कई-कई दिन फ़ोन बंद। उठाए तो टूल। बहन तो अब तक deaddiction centre भेझ चुकी होती, ऐसे हाल में। मगर, अबकी बार कुछ गड़बड़ है शायद? उसे शराब से दूर और पोस्टिक खाने की खास जरुरत है। मगर कहाँ का खाना, जब शराब देके सब निपट जाए?   

लगता है Protection के लिए काफी पैसे दे दिए? शराब पीने वाले को पैसा? उसे बचाने के लिए या उसका राम-नाम सत्य करने के लिए? अरे नहीं, पैसे उसे नहीं दिए। सिर्फ कोर्ट के जमीन वाले पेपर्स पे ऐसा लिखा है। 1 लाख सामने ही एक पड़ौसी हैं, उन्हें दिए हुए हैं। इन्हीं पडोसी ने बताया, की उन्हीं में से थोड़े-बहुत ले लेता है। 1.5 लाख और कहीं बताए, उस पड़ोस वाले भाई चारे ने। घर वालों से क्या खतरा था, उन्हें क्यों नहीं? अगर ये भी मान लें, की माँ या भाई ने बोलना ही छोड़ दिया है उससे, तो बहन के बारे में क्या कहेंगे? सबसे बड़ी बात, बहन जमीन खरीदने वालों के घर तक गई, जब सामने आया की ऐसा कुछ चल रहा है, या हो चुका। अपना समझ के, की ये मामला क्या है? और खरीदने वाले की माँ बोले, हमें तो खबर ही नहीं? लगता है स्कूल प्रधान चाचा को भी, अब तक भी खबर नहीं हुई? बाकी फोन उठाना या मेसेजेस का जवाब देना, शायद उसके संस्कारों में नहीं। कितने संस्कारी लोग हैं?         

विपरीत परिस्तिथियों का फायदा उठाओ और हालात के मारे को और जल्दी ऊपर पहुंचाओं? बहुत-सी बातों और हादसों पर यकीन नहीं होता। ऐसे, जैसे ज़मीन के पेपर आपके पास आ चुके हों। बेचने, खरीदने वाले और गवाहों के फोटो और अजीबोगरीब-सा, पैसे का हिसाब-किताब भी। ज़मीन, वो भी उस जगह, सच में इतनी सस्ती है? कोड़ी के भाव जैसे। कुछ वक़्त पहले, मैं खुद ज़मीन ढूढ़ रही थी, यहीं आसपास। मुझे तो इतनी सस्ती ज़मीन, कहीं सुनने को भी नहीं मिली। ये स्कूल वाले देंगे इतने में? खुद इन्होंने अभी पीछे काफी किले खरीदे हैं, कितने में? वो भी पानी भरने वाली बेकार-सी ज़मीन। इस ज़मीन के साथ वाली ज़मीन नहीं। शायद इसीलिए, माँ-बहन से बात तक नहीं करना चाहते?      

उसपे ये गवाह कौन हैं? क्या खास है उनमें? घर या आसपास से ही कोई इंसान क्यों नहीं? घर वालों के क्या आपस में जूत बजे हुए हैं? या वो देने नहीं देते? जिसकी बहन कल तक खुद ज़मीन देख रही थी, वहीं आसपास, वो वहीं की ज़मीन क्यों बेंचेंगे? मतलब, धोखाधड़ी का मामला है?

कोर्ट्स को शायद इतना-सा तो कर ही देना चाहिए की किसी को कोई आपत्ति है या नहीं, जैसा एक नोटिस, कम से कम पुस्तैनी ज़मीनो के केसों में घर तक पहुँचवा दें, अगर ज़मीन किसी के नाम हो तो भी। अगर ऐसा हो जाए, तो कितनी ही औरतें या परिवार वाले, बेवजह के कोर्ट्स के धक्कों से बच जाएँ। हमारे इन रूढ़िवादी इलाकों में हक़ होते हुए भी, पुस्तैनी जमीनों को ज्यादातर आज भी, माँ, बहनें नहीं लेती। मगर इसका अर्थ ये भी नहीं होता, की कोई भी ऐरा-गैरा, नथू-खैरा या जालसाज़ उन्हें धोखे से अपने नाम कर ले। कोई इंसान पिछले कई सालों से दारु की लत से झूझ रहा हो, तो उसका मानसिक संतुलन सही है या नहीं, ये सर्टिफिकेट कौन देगा? वो जो सालों से उसे झेल रहें हैं, और बचाने की कोशिश कर रहे हैं? या वो, जिनकी निगाह, उसकी ज़मीन पे हैं? और ऐसे लोगों को ये ज़मीनों के खरीददार, पैसे भी देते होंगे? कुछ बोतल ही काफी नहीं होंगी? उसकी कहानी किसी और पोस्ट में। क्यूँकि, ऐसी कई कहानियाँ आसपास से सामने आई।      

अपने ही आदमी हैं? घर कुनबा है? इसीलिए, पब्लिक नोटिस लगाना पड़ रहा है, की किसी सुनील की कोई ज़मीन ना बिकाऊ थी, ना है। शराब लत वाले इंसान को बोतल देके, ज़मीन लेने की कोशिश ना करें। और अगर ये पेपर सच हैं, जो मेरे पास थोड़ा लेट पहुँचे हैं शायद, तो इसका साफ़-साफ़ मतलब ये है, की खरीदने वाला भगोड़ा इसीलिए हो रखा है की धोखाधड़ी है। वरना, मैसेज करो तो जवाब नहीं और घर जाओ तो गुल हो जाता है, भतीजा। 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई मुबारक हो। आखिर इस पीढ़ी का नंबर भी तो, कहीं न कहीं से तो शुरू होना ही था? कितना बढ़िया हुआ है ना? अच्छा लग रहा है? बेहतर होता, अपने आसपास की सामाजिक सामान्तर घड़ाइयों से सीख लेके, ऐसे ओछे गुनाह से बचते। अगर शराबी चाचा की सच में कोई फ़िक्र होती, तो उसके वो हाल ना होते, जो हो रखे हैं। वो आजकल है कहाँ और रहता कहाँ है, या खाना वगैरह कहाँ खाता है, ये तो अता-पता जरूर होगा? भगोड़ा होने की बजाय, बेहतर होगा की बुआ से संपर्क करें।      

Saturday, May 10, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 9

कोई अपना शायद ऐसा ही सोचेगा? और ऐसा ही कुछ करने की कोशिश करेगा?

थोड़े कम पढ़े लिखे और बेरोजगार लोग, अगर अपना कुछ पढ़ाई-लिखाई से सम्बंधित शुरु करेंगे, तो ना सिर्फ साफ़-सुथरे, बने-ठने, साफ़-सुथरी जगह रहेंगे। बल्की, अच्छा बोलेंगे और कुछ न कुछ रोज नया सीखेंगे। राजनीती के दुरुपयोग करने वालों से या जालों से थोड़ा-बहुत बचेंगे। और क्या पता, चल ही निकलें। क्यूँकि, ज़िंदगी में इतना कुछ झेलने के बाद, शायद, थोड़ी-बहुत तो कुछ करने की इच्छा जाग ही जाती होगी? बशर्ते, ऐसा भला चाहने वालों के बीच रहें? 

और नाश उठाने वाले? 

ऐसे लोगों की कोई सहायता करनी तो दूर, जो थोड़ा-बहुत भी उनके पास होगा, उसे भी छीनने या ख़त्म करने की कोशिश करेंगे?

क्या चाचे-ताऊ भी ऐसा कुछ करते हैं?

दिसंबर 2024, 15 या 16?  

अजय आता है और बताता है, की लक्ष्य ने कल सुनील की ज़मीन ले ली। 

ले ली? या तेरा भी बीच में कोई लेना-देना है? ऐसे कैसे ले ली?

अशोक दांगी को फ़ोन जाता है, मगर उठाया ही नहीं जाता। कई कॉल जाती हैं, पर कोई उत्तर नहीं। चलो, व्यस्त होंगे। 

उसके बाद लक्ष्य दांगी की माँ कान्ता को फ़ोन जाता है और बोलते हैं, की मुझे तो ऐसा कुछ पता ही नहीं। पुछूंगी, लक्ष्य से। 

अगले दिन उनके घर जाकर मैं भी मिलती हूँ। मगर, कान्ता भाभी की जुबाँ कभी कुछ बोलती है, तो कभी कुछ। मतलब, सब पता है, और शायद साथ में शय भी दी हुई है।         

खैर। जब लोगों के असली रंग समझ आने लगते हैं, तो उन्हें साफ़-साफ़ बता भी दिया जाता है, की इसे धोखाधड़ी बोलते हैं। 

ऐसा ही कुछ अशोक दांगी और लक्ष्य दांगी के FB पर मैसेज भी होता है। 

उसी की कॉपी 

उन दिनों सुनील महाराज तो घर ही नहीं आ रहे थे। 
मैं प्लॉट गई देखने, तो बेचारे के ये हाल थे। 

बेचारे को ना चाल आ रही थी और पड़े-पड़े जो बक रहा था, वो तो क्या कहने?
ऐसे लोगों से, घर वालों की नाराजगी के बावज़ूद, कैसे अपने ज़मीन लेते होंगे?  
और वो ऐसे हाल में उसे पैसे भी देते होंगे?
मारने के लिए?
चल, जल्दी ख़िसक? 
या ऐसे लोगों की कॉपी भी कोई और ही सँभालते हैं?  





Friday, May 9, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 8

 फोटुओं की कहानी, बड़ी अजीब होती हैं वैसे?

ये भी यहीं आकर पता चला। आसपास सुने, किस्से-कहानी। 

बला, फलाना-धमकाना मोबाइल में फलाना-धमकाना की फोटू लिए हांड्य सै। सुथरी, पढ़ी-लिखी छोरी की फोटू लागय सै, अर न्यूं कह सै अंडी, या तेरी होण आली भाभी। 

अर छोरी किहअ और की अ लेहें बताई। भाई यो साँग के सै? 

बला जी इसे-इसे तो नरे साँग सैं।  

किसे का कितय इंटरेस्ट, अर किसे का कितय। 

अब ये इंटरेस्ट, घर बनाने के लिए माँगे गए लोन पर है?

या लोन ले लो, लोन ले लो, पर्सनल लोन ले लो। अरे मैडम, लोन ले लो। कह कहकर, दिए गए one click पर्सनल लोन पर है? 

घर के लिए लोन के लिए अप्लाई करना? और उसकी मोटी-सी फाइल बनवाकर, कई दिन धक्के खिलाकर, लोन ना देना? SBI, MDU  

मगर, उसी बैंक द्वारा, कोई खामखाँ-सी app बनाकर, one click लोन, जबरदस्ती पीछे पड़कर देना? मैसेज पे मैसेज भेझकर। SBI, YONO App 

क्या कहलाता है ये?   

ये सब कहीं और मिलता-जुलता है क्या? 

Conflict of Interest की राजनीती? बला जी, इनकी चाल जा तै भाई, भतीजां नै खसम बना दें। अर बाहण, बेटियाँ नै लुगाई। लिचड़ान की, बेहुदा सुरँग बताई ये तो। और इन सुरँगों के तरीके? ऐसी जोर आजमाईश के?

भाई इस ज़मीन प किमैं ना बनाइये, बाहण नै तै कती नहीं बणाण दिए। कैंसर हो ज्या गा भाई। बयाह ना होवै फेर। या किसे का होरा हो तो? बालक ना होवैं। 

चाचे, ताउवां नै दे दो वाह ए ज़मीन? अर थाम उनके जाड़े पाड़ते हांडो फेर? ना कोय बीमारी हॉवे अर घर भी बढ़िया बसैंगे?  

कैसे-कैसे फद्दू खिंच सकते हैं ये, भोले लोगों का? और कैसे-कैसे तरीकों से एक दूसरे से भिड़ाने की कोशिश कर सकते हैं? सिर्फ ज़मीन का कोई टुकड़ा हड़पने के लिए? Conflict of Interest की राजनीती, ऐसे ही खेलती है, आम लोगों से? और कब से खेलती आई है? यहाँ पे जितना देखो, समझोगे, उतना भेझा खराब होगा। की फद्दू बनाने की कोई सीमा है?

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 7

 मैं जब घर आई तो मेरे पास ढंग की रहने या पढ़ने-लिखने की जगह नहीं थी। इतने सालों खुले और ठीक-ठाक से (युनिवेर्सिटी) घरों में रहकर, एक कमरे या एक छोटे-से मकान में सिमट जाना, घुटन जैसा-सा था। अब अपना घर है और बचपन वहाँ बिता है, तो आदत तो वक़्त के साथ पड़ जाएगी। मगर, अब आप वहाँ रहोगे क्यों? किसलिए? होना तो ये चाहिए की माँ को भी वहाँ से अपने साथ कहीं ढंग की जगह ले जाओ। भाईयों को भी किसी ढंग के काम लगाओ। मगर आप जो सोचते हैं, जरुरी नहीं वो किसी आसपास को या वहाँ की राजनीती को भी सूट कर रहा हो। हुआ भी वही। जो कुछ करने की सोचो, उसी में आगे से आगे रोड़े। वो भी अपनों या आसपास द्वारा ही? या ये सब भी कहीं और से ही रिमोट कण्ट्रोल हो रहे हैं? मानव रोबॉटिकरण, यही सब देख, सुन और समझकर, पता चलने लगा था। आम लोगों में खोट नहीं है। गाँव का या कम पढ़ालिखा या आज की टेक्नोलॉजी के प्रयोग और दुरुपयोग से अंजान इंसान, आज भी पढ़े लिखे और कढ़े शिकारियों से कहीं ज्यादा भोला है। ये तो Conflict of Interest की राजनीती की पैदा की, चारों तरफ चोट हैं। ऐसे भी और वैसे भी। 

मुझे कम जगह में या भीड़-भाड़ वाली जगह रहना पसंद ही नहीं। तो सबसे पहले गाँव से थोड़ा दूर जो ज़मीन है, वहाँ एक रुम सैट बनाने का इरादा था। मगर, वो सबने घर पर ये कहकर मना कर दिया, की रहने के लिए सुरक्षित जगह नहीं है। ये स्कूल के साथ वाली ज़मीन पर बनाने का प्लॉन भी, यहीं घर से निकल कर आया था। क्यूँकि, मुझे किसी स्कूल जैसी जगह के इतने पास रहना भी पसंद नहीं। शोर और कुछ भीड़ तो वहाँ भी होगी। खैर। कई और सहुलियत हैं, जो उस ज़मीन को ज्यादा सही बता रही थी। वहाँ पानी मीठा है, जो यहाँ के गाँवों की खास दिक्कत है। और इसीलिए ऐसी ज़मीनो के रेट भी ज्यादा हैं। गाँव के बिल्कुल साथ लगती है। आसपास घर बन चुके हैं। स्कूल तो है ही। हाईवे पर नहीं है। तो रहने के हिसाब से ज्यादा सही है। आसपास चारों तरफ खेत हैं, जिन्हें खुला पसंद है। लो जी, वहाँ की हाँ क्या की, आदमखोरों के जाले फ़ैल गए। उसके बाद तो जो कुछ हुआ, पीछे पोस्ट्स में लिखा ही जा चुका। 

स्कूल वालों को क्या दिक्कत थी की वहाँ कुछ ऐसा ना बनने दें? भाभी स्कूल का प्लान बना चुके थे। अब जो स्कूल को बिज़नेस बोलते हैं और बिज़नेस की ही तरह चलाते हैं, उनके धंधे पर असर नहीं पड़ेगा? और वो तो पिछले 20-22 सालों में कितनी ही बार वो ज़मीन माँग चुके थे। और हर बार उन्हें मना किया जा चुका था। अब कोई उस ज़मीन पर अपना कुछ बनाने की भी सोचे, इतना बर्दास्त कैसे हो? नहीं तो चाचा, ताऊओं का होना तो ये चाहिए, की तुम भी बसो और आगे बढ़ो? आजकल ऐसे चाचे-ताऊ कहाँ हैं? होंगे कहीं, मगर यहाँ? यहाँ तो कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। वो भी बड़ी ही बेशर्मी से। एक दिन जुबाँ ऐसे चलेगी और अगले दिन कुछ और ही रचते नज़र आएँगे? कर दो साफ़ तीनों को और सिर्फ यही ज़मीन क्यों, बाकी सब भी तुम्हारा। लड़की का क्या है, वो तो वैसे भी किसी और घर जाती हैं। उनके अपने घर कहाँ होते हैं? कहीं भी नहीं। 

अब मुझे तो वहीँ बनाना है, चाहे रहना कहीं भी हो। देखते हैं आगे-आगे, की ये लालची और हरामी भतीजा और इसके पीछे वाली सुरँगे और क्या-क्या रचती हैं? सुन बेटे, सबके बीच सुन, तूने धोखाधड़ी से उस ज़मीन पर अपना नाम भी लिखा लिया हो (खास वाली फोटो खिंचा ली हो), तो भी वो तेरी नहीं। 

Clickbait Business? हाँ, यही हाल रहे तो जेल तेरी और तेरे साथ-साथ, ये सब रचने वालों की जरुर होगी। कोर्ट क्या कहते हैं, वैसे इसमें? उनके पास तो आजकल सब सबूत होते हैं।     

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 6

 घरों से प्लॉट की तरफ, वहाँ पे लेट (तालाब) की ज़मीन, आसपास लगते लोगों द्वारा हड़पने की कहानी और यूक्रेन युद्ध? अज़ीब किस्से-कहानी हैं ना? और उससे भी ज्यादा अज़ीब, संसार के किसी और कौने में, ऐसे-ऐसे युद्धों की सामान्तर घढ़ाईयाँ?   

यहाँ चाचा के लड़के का अहम रोल रहा? या जो राजनीतिक सुरँगे, उससे वो सब करवा रही थी, उनका? शायद दोनों का ही? ये मोहरा? और वो अहम खिलाड़ी? जो दूर, बहुत दूर बैठे, किसी रिमोट-सा सब संभाल लेते हैं? और ये सब करने के लिए उसे पैसे देने वाले का?   

अगर कोई इंसान ये कहे, की मैं कुछ भी करुँ, मुझे मेरे घर वाले बचा लेंगे या फिर भी हमेशा साथ रहेंगे, तो गड़बड़ उस घर में या उन अपनों में भी है? या शायद, वो ऐसी हेकड़ी, सिर्फ खुद को बचाने के लिए कर रहा है? या शायद उस जगह का या ऐसी-ऐसी जगहों के माहौल ही ऐसे होते हैं? उन्हें ना खुद अपनी काबिलियत पता होती और ना उन्हें बताने वाले? उन्हें ऐसे रस्ते ही नहीं दिखाए जाते, जहाँ जितनी मेहनत ऐसे-ऐसे तिकड़म कर कुछ हड़पने की बजाय, शांति और ईमानदारी से कमाने में मिलता है? सिर्फ राजनीतिक पार्टियाँ या उनकी सुरँगे ही नहीं, बल्की, खुद अपने, कहीं न कहीं, गलत करने की तरफ धकेलने में सहायक-सी भुमिका निभा रहे होते हैं? अब वो छोटा-मोटा कुछ गलत करने से नहीं रोक रहे या उसमें सहायक बन रहे हैं, तो आगे जब वो बड़ा कुछ गलत करेगा, तब रोकेंगे क्या? या चाहकर भी रोक पाएँगे?

अब प्लॉट की ज़मीन आगे बढ़ाई है, रेत डाल-डाल कर। उसमें कुछ तो पैसे लगे ही होंगे? और थोड़ा-बहुत रिस्क और उलझन भी उठाई है? तो वो पैसे निकलेँगे कैसे और कहाँ से? ये बताने का काम भी राजनीतिक पार्टीयों की सुरँगे ही करेंगी? वो आपको आगे से आगे, छोटे-मोटे लालच देते चलते हैं? और आप लेते चलते हैं? बिना दूरगामी परिणाम जाने या समझे? खेल तो सब वही राजनीतिक पार्टियाँ और उनकी सुरँगे रच रही हैं ना? फाइल यूनिवर्सिटी में चलती हैं और ज्यादा बड़ी मार के लिए, सामान्तर घढ़ाईयाँ बढे-चढ़े रुप में, गाँवों में या ऐसी सी जगहों पर घड़ी जाती हैं? कुछ गलत तो नहीं कहा? या सब मैच कर रहा है? कब यूनिवर्सिटी में क्या हुआ या कैसी फाइल चली या ऑफिसियल ईमेल और कब गाँव में क्या कुछ घड़ा गया? इन कम पढ़े-लिखे बेरोजगारों को तो ऐसा कुछ अंदाजा तक नहीं होगा? खुद मुझे ही नहीं पता था। जब तक ये सब गाँव आकर आसपास देखना, समझना और झेलना शुरु नहीं किया।  

पहले यहाँ बच्चों के या युवाओं के ख़िलाफ़ जितने भी केस हुए, वो भी ऐसे ही हैं? अब ज्यादा पहले की फाइल्स का रिकॉर्ड तो मेरे पास नहीं, क्यूँकि, तब तक खुद मुझे नहीं मालूम था की ये सिस्टम और राजनीती काम कैसे कर रहे हैं? या आम लोगों की ज़िंदगियों को कैसे-कैसे प्रभावित कर रहे है? हाँ। जो कुछ चल रहा था, उसके किसी न किसी रुप में ऑफिसियल रिकॉर्ड हैं। और वो बड़ी आसानी-से मैच किए जा सकते हैं? 

अब पैसे उघाने हैं और उसी में थोड़े-बहुत कमाने को भी मिल जाएँगे? तो उन्हीं राजनितिक सुरँगों का अगला दाँव? स्कूल पे पास वाली खेत की ज़मीन? उसके लिए फिर से उनके काम कौन आएगा? सोचो?