Saturday, May 10, 2025

ज़मीनखोरों के ज़मीनी धंधे, शिक्षा और राजनीती के नाम पर 9

कोई अपना शायद ऐसा ही सोचेगा? और ऐसा ही कुछ करने की कोशिश करेगा?

थोड़े कम पढ़े लिखे और बेरोजगार लोग, अगर अपना कुछ पढ़ाई-लिखाई से सम्बंधित शुरु करेंगे, तो ना सिर्फ साफ़-सुथरे, बने-ठने, साफ़-सुथरी जगह रहेंगे। बल्की, अच्छा बोलेंगे और कुछ न कुछ रोज नया सीखेंगे। राजनीती के दुरुपयोग करने वालों से या जालों से थोड़ा-बहुत बचेंगे। और क्या पता, चल ही निकलें। क्यूँकि, ज़िंदगी में इतना कुछ झेलने के बाद, शायद, थोड़ी-बहुत तो कुछ करने की इच्छा जाग ही जाती होगी? बशर्ते, ऐसा भला चाहने वालों के बीच रहें? 

और नाश उठाने वाले? 

ऐसे लोगों की कोई सहायता करनी तो दूर, जो थोड़ा-बहुत भी उनके पास होगा, उसे भी छीनने या ख़त्म करने की कोशिश करेंगे?

क्या चाचे-ताऊ भी ऐसा कुछ करते हैं?

दिसंबर 2024, 15 या 16?  

अजय आता है और बताता है, की लक्ष्य ने कल सुनील की ज़मीन ले ली। 

ले ली? या तेरा भी बीच में कोई लेना-देना है? ऐसे कैसे ले ली?

अशोक दांगी को फ़ोन जाता है, मगर उठाया ही नहीं जाता। कई कॉल जाती हैं, पर कोई उत्तर नहीं। चलो, व्यस्त होंगे। 

उसके बाद लक्ष्य दांगी की माँ कान्ता को फ़ोन जाता है और बोलते हैं, की मुझे तो ऐसा कुछ पता ही नहीं। पुछूंगी, लक्ष्य से। 

अगले दिन उनके घर जाकर मैं भी मिलती हूँ। मगर, कान्ता भाभी की जुबाँ कभी कुछ बोलती है, तो कभी कुछ। मतलब, सब पता है, और शायद साथ में शय भी दी हुई है।         

खैर। जब लोगों के असली रंग समझ आने लगते हैं, तो उन्हें साफ़-साफ़ बता भी दिया जाता है, की इसे धोखाधड़ी बोलते हैं। 

ऐसा ही कुछ अशोक दांगी और लक्ष्य दांगी के FB पर मैसेज भी होता है। 

उसी की कॉपी 

उन दिनों सुनील महाराज तो घर ही नहीं आ रहे थे। 
मैं प्लॉट गई देखने, तो बेचारे के ये हाल थे। 

बेचारे को ना चाल आ रही थी और पड़े-पड़े जो बक रहा था, वो तो क्या कहने?
ऐसे लोगों से, घर वालों की नाराजगी के बावज़ूद, कैसे अपने ज़मीन लेते होंगे?  
और वो ऐसे हाल में उसे पैसे भी देते होंगे?
मारने के लिए?
चल, जल्दी ख़िसक? 
या ऐसे लोगों की कॉपी भी कोई और ही सँभालते हैं?  





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